कवरेज इंडिया न्यूज डेस्क वाराणसी।
वाराणसी: महामहोपाध्याय पद्म विभूषण 'सर' डॉ. गोपीनाथ कविराज जयंती समारोह के अवसर पर, संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय का सांख्य योगतंत्रागम विभाग एक अद्वितीय ज्ञान सभा का साक्षी बना। इस गरिमामय आयोजन में आध्यात्मिक विभूति पूज्य श्री रतन वशिष्ठ जी को विशिष्ट अतिथि के रूप में सम्मानित किया गया, जिन्होंने "जीवन को सहज करने" की मूल महत्ता पर अपना दिव्य वक्तव्य दिया। उनके विचारों ने उपस्थित सभी विद्वानों और प्रोफेसरों को गहराई तक प्रभावित किया।
इस विशेष कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रोफेसर सुधाकर मिश्र जी ने की, जिन्होंने अपने अध्यक्षीय भाषण में आध्यात्मिक विचारों की गहराई से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। कार्यक्रम के संयोजक श्री राघवेन्द्र द्विवेदी जी ने अत्यंत शालीनता और सम्मान के साथ अतिथियों का आतिथ्य किया।
अपने उद्बोधन में पूज्य श्री रतन वशिष्ठ जी ने भारतीय दर्शन के एक गहन सूत्र को समझाया, जिसमें उन्होंने जीवन के चार सोपानों की व्याख्या की। उन्होंने कहा कि "जीवन को सहज करना ही मूल बात है।" इस कथन की पुष्टि में उन्होंने संस्कृत के एक श्लोक का उल्लेख किया:
"उत्तमा: सहजावस्था, मध्यमा ध्यानधारणा।
अधमा मूर्तिपूजा च, तीर्थ यात्राधमाधमा॥"
इस श्लोक का अर्थ समझाते हुए उन्होंने बताया कि आत्मिक विकास का पहला सोपान तीर्थ यात्रा है, जिसे सबसे प्राथमिक स्तर माना गया है। इसके बाद दूसरा सोपान मूर्ति पूजा है, जो श्रद्धा और भक्ति को जागृत करती है। तीसरा सोपान ध्यान धारणा है, जो मन को एकाग्र करने की उच्चतम साधना है। और इन सभी के ऊपर, सर्वोच्च और उत्तम अवस्था सहज अवस्था है। गुरु जी ने बल दिया कि जब व्यक्ति जीवन को सहजता से जीना सीख लेता है, तो वह सर्वोच्च आध्यात्मिक स्थिति को प्राप्त करता है।
पूज्य गुरु जी के विचार सुनकर उपस्थित सभी विद्वान और प्रोफेसर अत्यंत प्रभावित हुए। उनका उद्बोधन न केवल आध्यात्मिक था, बल्कि व्यावहारिक जीवन में सहजता के महत्व को भी दर्शाता था। कार्यक्रम के अंत में, प्रोफेसर राघवेंद्र द्विवेदी ने धन्यवाद ज्ञापन किया और पूज्य श्री रतन वशिष्ठ जी के विचारों को वर्तमान समय में अत्यंत प्रासंगिक बताया।
यह समारोह डॉ. गोपीनाथ कविराज की जयंती को समर्पित था, जिनके ज्ञान और योगदान को याद करते हुए यह कार्यक्रम आयोजित किया गया था।


