कवरेज इंडिया न्यूज़ ब्यूरो लखनऊ
लखनऊ | उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने प्रदेश के भविष्य को डिजिटल जाल से निकालकर ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाने के लिए एक बेहद सराहनीय कदम उठाया है। राज्य के सभी सरकारी बेसिक और माध्यमिक स्कूलों में अब 'डेली न्यूजपेपर रीडिंग' को अनिवार्य कर दिया गया है।
अपर मुख्य सचिव (शिक्षा) पार्थ सारथी सेन शर्मा द्वारा जारी निर्देशों के अनुसार, यह पहल न केवल छात्रों का सामान्य ज्ञान बढ़ाएगी, बल्कि उन्हें मोबाइल और सोशल मीडिया की बढ़ती लत से दूर करने में भी 'गेम-चेंजर' साबित होगी।
स्कूल अब बनेंगे 'न्यूज हब': क्या होंगे मुख्य बदलाव?
सरकार ने इस अभियान को केवल अखबार पढ़ने तक सीमित नहीं रखा है, बल्कि इसे एक इंटरैक्टिव लर्निंग प्रोसेस बनाया है:
- मॉर्निंग असेंबली में 'न्यूज बुलेटिन': सुबह की प्रार्थना सभा के 10 मिनट अब देश-दुनिया के नाम होंगे। छात्र मंच से खेल, विज्ञान और राष्ट्रीय महत्व की सकारात्मक खबरें पढ़कर सुनाएंगे।
- वोकैबलरी बूस्टर: 'वर्ड ऑफ द डे' के जरिए छात्र रोजाना अखबार से कठिन शब्द चुनकर नोटिस बोर्ड पर लगाएंगे, जिससे उनकी शब्दावली (Vocabulary) मजबूत होगी।
- एनालिटिकल थिंकिंग: कक्षा 9वीं से 12वीं तक के छात्रों के लिए संपादकीय (Editorial) पर चर्चा और डिबेट अनिवार्य होगी, ताकि उनमें आलोचनात्मक सोच विकसित हो सके।
- क्रिएटिव कॉर्नर: छात्र न केवल अखबार पढ़ेंगे, बल्कि अपनी खुद की स्कूल मैगजीन और वॉल-न्यूजपेपर भी तैयार करेंगे।
- लाइब्रेरी कल्चर: हर छात्र को सप्ताह में कम से कम एक गैर-पाठ्यक्रम पुस्तक (जीवनी या साहित्य) पढ़ना अनिवार्य होगा।
इस पहल के पीछे का विजन
विशेषज्ञों का मानना है कि फिजिकल अखबार पढ़ने से बच्चों में 'डीप वर्क' और 'एकाग्रता' बढ़ती है। डिजिटल कंटेंट के दौर में जहाँ 'फेक न्यूज' का खतरा बढ़ा है, यह पहल बच्चों को सही और प्रामाणिक जानकारी के बीच अंतर करना सिखाएगी।
"नो बुकेट, ओनली बुक" सरकार ने स्कूलों में स्वागत सत्कार के तरीके को भी बदल दिया है। अब बुके की जगह किताबें भेंट की जाएंगी, जिससे समाज में 'किताब संस्कृति' को बढ़ावा मिले।
भविष्य की तैयारी
शिक्षाविदों के अनुसार, इस कदम से सरकारी स्कूलों के बच्चे निजी स्कूलों के छात्रों के साथ प्रतिस्पर्धा करने में अधिक सक्षम होंगे। प्रतियोगी परीक्षाओं (जैसे UPSC, UPPSC, SSC) की नींव अब प्राथमिक स्तर से ही मजबूत होनी शुरू हो जाएगी।
निष्कर्ष: अगर यह योजना धरातल पर पूरी पारदर्शिता के साथ लागू होती है, तो उत्तर प्रदेश का शैक्षणिक परिदृश्य आने वाले कुछ ही वर्षों में पूरी तरह बदल जाएगा। यह केवल एक आदेश नहीं, बल्कि एक बौद्धिक आंदोलन है।
