नवरात्रि में कन्याओं के साथ क्यों होती है एक बालक की पूजा?


कवरेज इंडिया धर्म कर्म डेस्क 

नवरात्रि के पावन पर्व पर, विशेषकर अष्टमी और नवमी तिथि पर, कन्या पूजन का विधान है। इस पूजा में छोटी कन्याओं को देवी का साक्षात रूप मानकर उनकी पूजा की जाती है, उन्हें भोजन कराया जाता है और उपहार दिए जाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस महत्वपूर्ण पूजन विधि में एक रहस्यमयी बालक को भी शामिल करने की परंपरा क्यों है?

धार्मिक रहस्य: बटुक भैरव का संबंध

आचार्य विजय कुमार के अनुसार, इस परंपरा के पीछे गहरी धार्मिक मान्यता है। जब हम माँ दुर्गा की पूजा करते हैं, तो उनके साथ उनके एक विशेष सहायक, बटुक भैरव, भी होते हैं।

 कौन हैं बटुक भैरव? - बटुक भैरव, भगवान शिव का एक उग्र लेकिन बाल रूप हैं। इन्हें माँ दुर्गा की रक्षा और उनके अनुचर (साथी) के रूप में पूजा जाता है।

पूजन का महत्व: आचार्य जी बताते हैं कि जब आप कन्या पूजन में कन्याओं को आमंत्रित करते हैं, तो उन्हें माँ दुर्गा के नौ रूपों (नवदुर्गा) का प्रतिनिधित्व माना जाता है। इसी तरह, उनके साथ एक बालक को भी आमंत्रित करना चाहिए। इस बालक को बटुक भैरव का प्रतिनिधि मानकर उनका विधिवत पूजन किया जाता है।

आशीर्वाद की प्राप्ति: इस तरह, कन्याओं (देवी स्वरूप) और बालक (बटुक भैरव स्वरूप) दोनों की पूजा करके भक्त यह सुनिश्चित करते हैं कि उन्हें माँ दुर्गा के साथ-साथ उनके रक्षक और अनुचर बटुक भैरव का भी संपूर्ण आशीर्वाद प्राप्त हो। मान्यता है कि बटुक भैरव का आशीर्वाद भय और नकारात्मकता को दूर करता है, और पूजा को पूर्णता प्रदान करता है।

संक्षेप में, कन्या पूजन में कन्याओं के साथ एक बालक की पूजा करना, वास्तव में माँ दुर्गा और उनके रक्षक बटुक भैरव की युगल कृपा प्राप्त करने का एक प्राचीन और महत्वपूर्ण धार्मिक तरीका है।

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