प्रेम प्रसंग में बना शारीरिक संबंध बलात्कार नहीं, इलाहाबाद हाईकोर्ट की टिप्पणी


कवरेज इंडिया न्यूज़ ब्यूरो प्रयागराज 

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में स्पष्ट किया है कि यदि कोई महिला और पुरुष आपसी सहमति से लंबे समय तक प्रेम संबंध में रहते हैं और शारीरिक संबंध बनाते हैं, तो बाद में शादी न हो पाने पर इसे दुष्कर्म नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने एक मामले में महिला द्वारा दायर रेप के आरोप को खारिज करते हुए आरोपी के खिलाफ चल रही आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया। यह फैसला 12 सितंबर 2025 को आया, जो सहमति और शादी के वादे से जुड़े कानूनी मामलों में एक महत्वपूर्ण मिसाल कायम करता है।

आखिर क्या था पूरा मामला?

यह केस उत्तर प्रदेश के एक जिले से जुड़ा है, जहाँ एक महिला ने अपने सहकर्मी, जो एक लेखपाल था, पर रेप का आरोप लगाया था। महिला का कहना था कि आरोपी ने उससे शादी का झूठा वादा किया और इसी आधार पर सालों तक उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए। जब दोनों के संबंध 2013 में काम के दौरान शुरू हुए, तो वे जल्द ही प्रेम में बदल गए। आरोप के अनुसार, यह रिश्ता लगभग 10-12 साल तक चला और इसमें दोनों की सहमति से शारीरिक संबंध भी बने।

जब आरोपी ने शादी से इनकार कर दिया, तो महिला ने उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376 (रेप) के तहत पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। पुलिस ने चार्जशीट दाखिल कर दी, लेकिन हाईकोर्ट ने इस मामले की गहराई से जाँच की।

कोर्ट की अहम टिप्पणी: सहमति और वादे का फर्क

जस्टिस अनीश गुप्ता की एकल पीठ ने इस मामले की सुनवाई की। कोर्ट ने पाया कि:

यदि संबंध कई सालों से चले आ रहे हैं और परिवार के सदस्यों को भी इसकी जानकारी है, तो यह माना जाता है कि दोनों पक्षों के बीच पूर्ण सहमति थी।

सिर्फ शादी का वादा टूटने या सामाजिक बाधाओं के कारण शादी न हो पाने पर वर्षों से चले आ रहे सहमति वाले संबंधों को रेप नहीं कहा जा सकता। कोर्ट ने कहा कि महिला शुरू से ही इन बाधाओं को जानती थी, फिर भी उसने संबंध जारी रखे।

 दुष्कर्म की परिभाषा में बल, धमकी, या धोखे से बनी सहमति का अभाव एक मुख्य तत्व है। इस मामले में ऐसा कोई तत्व नहीं था।

अदालत ने कहा कि शादी का वादा निभाना एक सिविल मामला हो सकता है, लेकिन रेप का आरोप तब तक मान्य नहीं है जब तक कि यह साबित न हो कि संबंध जबरन बनाए गए थे या सहमति धोखे से ली गई थी।

कानूनी प्रभाव और भविष्य की राह

यह फैसला रेप और शादी के झूठे वादे से संबंधित मामलों में एक स्पष्ट दिशा देता है। यह इस बात पर जोर देता है कि अगर संबंध लंबे समय तक आपसी सहमति से बने हों, तो उन्हें रेप नहीं माना जाएगा। हालांकि, कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस पर चिंता जताई है, उनका मानना है कि इससे महिलाओं के लिए न्याय पाना और मुश्किल हो सकता है, जिन्हें शादी का झूठा वादा करके धोखा दिया गया हो।

यह फैसला इलाहाबाद हाईकोर्ट के पिछले कई निर्णयों से मेल खाता है, जिसमें सहमति पर आधारित संबंधों को रेप नहीं माना गया था। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे मामलों में महिलाएँ धोखाधड़ी या विश्वासघात के लिए दीवानी (civil) मुकदमा दायर कर सकती हैं, जिससे न्याय मिलने की संभावना बनी रहती है।

यह निर्णय दिखाता है कि कानून सहमति और धोखे के बीच का अंतर स्पष्ट रूप से परिभाषित करता है, और यह फैसला प्रेम संबंधों में कानूनी जागरूकता की आवश्यकता को भी उजागर करता है।

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