प्रयागराज: शहीद चंद्रशेखर आज़ाद के नाम से 'पंडित' शब्द हटाने पर विवाद, पढ़िए विस्तार से - By Coverage India



कवरेज इंडिया न्यूज़ ब्यूरो प्रयागराज 

प्रयागराज के सिविल लाइंस में स्थित शहीद वॉल पर अमर शहीदों की गाथा तो अंकित है, लेकिन अब एक नाम को लेकर विवाद ने तूल पकड़ लिया है। अमर शहीद चंद्रशेखर आज़ाद, जिन्हें उनके साथी और समकालीन क्रांतिकारी प्यार से 'पंडित जी' कहकर पुकारते थे, उनके नाम के साथ लिखा 'पंडित' शब्द शिलापट्ट से हटा दिया गया है। इस घटना ने न केवल स्थानीय लोगों, बल्कि शहीदों के सम्मान से जुड़ी संस्थाओं और नेताओं को आक्रोशित कर दिया है।

शहीद वॉल का इतिहास और विवाद की शुरुआत

शहीद वॉल की स्थापना 12 जनवरी 2015 को तत्कालीन राज्यपाल केशरी नाथ त्रिपाठी के हाथों हुई थी। 'भारत भाग्य विधाता' संस्था के प्रस्ताव पर स्मार्ट सिटी प्राइवेट लिमिटेड द्वारा इसका सौंदर्यीकरण किया गया। संस्था के संस्थापक वीरेंद्र पाठक ने प्रयागराज के गुमनाम शहीदों को खोजकर उन्हें इस वॉल पर सम्मान दिलवाया। उस समय गठित समिति, जिसमें इतिहासकार और बुद्धिजीवी शामिल थे, ने चंद्रशेखर आज़ाद के नाम को 'उर्फ पंडित जी' के साथ अंकित करने का निर्णय लिया था।  

अब सवाल यह उठ रहा है कि 'पंडित' शब्द को शिलापट्ट से क्यों और किसके आदेश पर हटाया गया? 'भारत भाग्य विधाता' संस्था के बार-बार पूछने पर भी कोई अधिकारी इस मुद्दे पर स्पष्टीकरण देने को तैयार नहीं है। इतना ही नहीं, शहीद वॉल के लिए गठित तीन सदस्यीय समिति ने भी बिना उनकी अनुमति के इस बदलाव पर कड़ा ऐतराज जताया है। 

संस्था का तीखा विरोध: "यह शहीद विरोधी मानसिकता है"

'भारत भाग्य विधाता' संस्था ने इस कृत्य को शहीदों के अपमान और इतिहास के साथ छेड़छाड़ करार दिया है। संस्था के कार्यपरिषद सदस्य डॉ. प्रमोद शुक्ला की अध्यक्षता में हुई बैठक में इस मुद्दे पर गहरा रोष व्यक्त किया गया। संस्था ने सवाल उठाए:  

- यह संशोधन किसके आदेश पर हुआ?  

- क्या शहीद वॉल की समिति ने इसकी सिफारिश की थी?  

- क्या यह इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पेश करने की कोशिश नहीं?  

संस्था ने इसे राष्ट्रीय प्रतीक चिह्नों के अपमान से जोड़ते हुए दोषियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने की मांग की है। संस्था का कहना है कि 'पंडित' शब्द को हटाना न केवल जातीय पूर्वाग्रह को दर्शाता है, बल्कि यह शहीदों के प्रति अपमानजनक रवैया भी प्रदर्शित करता है। 

'पंडित' शब्द का महत्व

संस्था ने स्पष्ट किया कि 'पंडित' शब्द का प्रयोग चंद्रशेखर आज़ाद के लिए उनके समकालीन क्रांतिकारियों द्वारा सम्मान और स्नेह के रूप में किया जाता था। यह शब्द उनकी विद्वता और नेतृत्व को दर्शाता था। उदाहरण देते हुए संस्था ने कहा, जैसे पंडित हरिप्रसाद चौरसिया अपने नाम के साथ 'पंडित' शब्द का प्रयोग करते हैं, वैसे ही चंद्रशेखर आज़ाद को 'पंडित जी' कहना उनकी पहचान का अभिन्न हिस्सा था। इसे जातिसूचक मानकर हटाना शहीदों के सम्मान और इतिहास के प्रति गलत मानसिकता को दर्शाता है।

"दोषियों पर हो सख्त कार्रवाई"

संस्था ने सरकार से मांग की है कि इस बदलाव के पीछे जिम्मेदार अधिकारियों की जांच की जाए और उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई हो। इस बीच, शहर उत्तरी के विधायक हर्षवर्धन वाजपेयी ने भी इस घटना पर कड़ा रुख अपनाया। उन्होंने कहा, "पंडित चंद्रशेखर आज़ाद का अपमान किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। उनके सम्मान को बनाए रखने के लिए हम हर स्तर पर लड़ाई लड़ेंगे। पंडित जी हमारे गौरव और प्रेरणा के प्रतीक हैं।"

नगर निगम की चुप्पी

जानकारी के अनुसार, यह बदलाव तत्कालीन नगर आयुक्त चंद्र मोहन गर्ग के तबादले के बाद हुआ। न तो इसकी कोई आधिकारिक सूचना दी गई और न ही कोई स्पष्टीकरण जारी किया गया। इस चुप्पी ने विवाद को और हवा दी है। 

आगे क्या?

यह मामला अब केवल एक शब्द को हटाने तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह शहीदों के सम्मान, इतिहास की रक्षा और प्रशासनिक जवाबदेही का सवाल बन चुका है। 'भारत भाग्य विधाता' संस्था और स्थानीय नेताओं ने इस मुद्दे को लेकर आंदोलन की चेतावनी दी है। जनता और शहीदों के प्रति सम्मान रखने वालों की निगाहें अब सरकार और प्रशासन के अगले कदम पर टिकी हैं। 

निष्कर्ष

चंद्रशेखर आज़ाद जैसे अमर शहीदों की पहचान और सम्मान के साथ किसी भी तरह की छेड़छाड़ न केवल उनकी स्मृति का अपमान है, बल्कि यह देश के स्वतंत्रता संग्राम की भावना पर भी चोट है। इस विवाद ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या प्रशासनिक निर्णय लेते समय शहीदों के प्रति संवेदनशीलता को नजरअंदाज किया जा रहा है?

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