}(document, "script")); प्रयागराज में स्थानीय निकाय का चुनाव कैसे लड़ा जाए योजना और ताकत भाजपा से सीखना चाहिए!

प्रयागराज में स्थानीय निकाय का चुनाव कैसे लड़ा जाए योजना और ताकत भाजपा से सीखना चाहिए!


वरिष्ठ पत्रकार वीरेंद्र पाठक

अब वो जमाना गया जब नायकों की तरह से बड़े नेता आते थे और माहौल पलट कर चले जाते थे। वक्त है, जमीनी स्तर पर काम करने का और वह भाजपा के नेताओं में देखा जा रहा है।

कल उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी जो वर्तमान में सबसे बड़ा भाजपा का यूपी में चेहरा है आ रहे हैं। प्रयागराज के हर छोटे-बड़े नेताओं से जुड़े लोकप्रिय नेता उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य जी जिस तरह से नगर प्रमुख के लिए कीलकांटा  दुरुस्त कर रहे हैं, यह रास्ता जीत की ओर जाता है। भाजपा का कौशल प्रबंधन, टिकट दावेदार प्रत्याशी के चुनाव प्रचार में कूद ये हैं। इससे दिखता है हर वह व्यक्ति जो नगर प्रमुख का दावेदार था , विरोध की वजह भाजपा प्रत्याशी को जिताता हुआ दिख रहा है। अपवाद सब जगह है। राजनीतिक घात भी होता है किंतु इन सबसे ऊपर जो दिख रहा है वही बिक रहा है। भाजपा एकजुट होकर लड़ रही है । ऐसा दिख रहा है। उप मुख्यमंत्री के अलावा प्रभारी मंत्री भाजपा के पूर्व अध्यक्ष और ताकतवर कैबिनेट जल मंत्री स्वतंत्र देव सिंह स्थानीय स्तर पर डेरा डालकर जीत की बाधाओं को दूर कर रहे हैं।

संसाधन में भले ही भाजपा  के नगर प्रमुख प्रत्याशी कमजोर नजर आते हो किंतु बूथ स्तर तक पार्टी कार्यकर्ताओं की मजबूती सारी खाई पाट देती है। यह जीत का मंत्र है।

जब ऊपर वाले नीचे वालों को उनके हाल पर छोड़ दें तो समझना चाहिए कि नायक जीत के प्रति सशंकित है। सपा का हाल यही है , दिखता भी यही है । हो सकता है कि अंडर करंट ज्यादा हो या कोई रणनीति हो!

 दक्षिण में राजनीति का नायक देवत्व को प्राप्त है। वह आता है, हाथ हिलाता है , और चला जाता है। सपा इसी ओर बढ़ रही है। जातिगत वोट के आधार पर खड़ी सपा को भाजपा के विरोधियों और उसकी नीति से उपजे आक्रोश का वोट मिलने की उम्मीद है। मुलायम सिंह यादव ने जमीन पर उतर कर पार्टी को मजबूती प्रदान की थी। सपा के कुर्मी चेहरा और प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम तो प्रयागराज आ गए, लेकिन अखिलेश जी व अन्य अभी चुनाव समर से दूर है। 

क्या हार के बाद प्रतिष्ठा पर बट्टा लगने का डर है ? बट्टा तो दोनों परिस्थितियों में लगेगा। अगर हार होती है और अखिलेश जी नहीं आते तो भी कहा जाएगा कि अखिलेश जी आते तो कुछ और बात होती ! अगर अखिलेश जी आते तो और हार हो जाती तो भी अखिलेश जी पर उंगलियां उठती, लेकिन ऐसी दशा में कार्यकर्ताओं का मनोबल और बढ़ जाता। अखिलेश जी पर जो निशाना लगता है कि ड्राइंग रूम  राजनीति करते हैं वह ना होता।

हालांकि समर्पित कार्यकर्ताओं के मामले में सपा बेजोड़ है। कार्यकर्ताओं का समर्पण ही इसकी ताकत है। सभासद प्रत्याशियों ने अगर कोई ताकत दिखाई, तो शतरंज के खेल में गोटी इधर से उधर होगी। कायस्थ बाहुल्य क्षेत्र में अंदर खाने मत का इधर से उधर गुल खिला सकता है। 

अतीक अशरफ और उमेश पाल हत्या कांड के बाद क्या राजनैतिक ध्रुवीकरण में परिवर्तन हुआ है ?  इसका पता नहीं लग रहा। 4 मई के बाद ही यह पत्ते खुलेंगे। और फिर चमत्कार को नमस्कार है।

बसपा और अन्य तो मात्र ड्राइंग रूम में बैठकर कागजी आंकड़ों का खेल खेल रहे हैं।

कुल मिलाकर उमेश पाल के बाद अतीक अशरफ हत्याकांड, नंदी का राजनीतिक हाशिए पर भेजा जाना । संगठन की मजबूती ही चुनाव की हार जीत पर असर डालेगा। हां यह बिल्कुल स्पष्ट है कि कानून व्यवस्था सबसे बड़ा मुद्दा और एक ही मुद्दा सामने है।  इसमें उत्तर प्रदेश की सरकार को लोग एक नंबर पर खड़ा कर रहे हैं। कांग्रेस पार्टी से ज्यादा मत कांग्रेस प्रत्याशी के हैं।

वैसे राजनीत में कभी भी कुछ भी हो सकता है यहां चमत्कार को नमस्कार ही लोग करते हैं। 4 मई तक का इंतजार करिए। ज्यादा से ज्यादा मतदान करें और अपनी इच्छा वाली पार्टी के प्रत्याशी को चुन लीजिए । क्योंकि आपके पास और कोई दूसरा विकल्प नहीं है।

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