}(document, "script")); योग और आयुर्वेद से संवारे अपना जीवन : डा. आकांक्षा श्रीवास्तव

योग और आयुर्वेद से संवारे अपना जीवन : डा. आकांक्षा श्रीवास्तव


कवरेज इंडिया हेल्थ डेस्क

"योग" आज संसार का एक अभिन्न अंग बन गया है। योग के बिना जीवन की कल्पना उसी तरह असंभव है जैसे आयुर्वेद के बिना जीवन।

योग और आयुर्वेद यह दोनो हमारे प्राचीनतम शास्त्र है जो शरीर के आरोग्य के लिए बहुत ही आवश्यक है। जिस प्रकार आयुर्वेद का प्रयोजन है "स्वास्थस्य स्वास्थ रक्षणम् आतुरस्य विकार प्रशमनं च" अर्थात् स्वस्थ व्यक्ति के स्वस्थ की रक्षा करना और आतुर रोगी के रोग का निराकरण करना। उसी प्रकार योग का प्रयोजन है" योगाश्चित्तवृत्ति निरोधः" अर्थात चित्त की वृत्तियों को सब बुराइयों से हटा कर शुभ गुणों में स्थिर करके परमेश्वर के समीप में मोक्ष को प्राप्त करने को योग कहते है। इसलिए हम देखे तो आयुर्वेद और योग दोनो को जीवन में अपनाने से हमे अपनी काय की आरोग्यता, निर्मलता,शुद्धता, स्वस्थता, आध्यात्मिकता इन सभी की प्राप्ति हो जाती है।

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गीता में भी भगवान श्री कृष्ण ने कहा है"योगस्थः कुरु कर्माणि संग त्यक्तवा धनंजय। सिद्ध्य सिद्धयो: समोभूत्वा समत्वं योग उच्यते।।

अर्थात हे धनंजय (अर्जुन )कर्म न करने का आग्रह त्यागकर यश,अपयश के विषय में समबुद्धि होकर योग युक्त होकर कर्म कर क्योंकि समत्व को ही योग कहते है अर्थात मन का समभाव ही योग कहलाता है।

इसी के साथ गीता में कहा है

"योग:कर्मसु कौशलम् " अर्थात योग से ही कर्मों में कुशलता आती है ।कुशलता का अर्थ है ऐसी मानसिक स्थिति में काम करना की उस कर्म  के फल की चिंता में पड़कर खुद को व्यग्र न होने दे।

आज वैश्विक स्तर पर हमने योग को हमारे आध्यात्म के साथ साथ शरीर के आरोग्य के लिए एक नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया है ।विश्व में आज विभिन्न व्याधियों के लिए और निरोग प्राप्ति के लिए सबने इसको आपने जीवन में उतारा है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण हम सबने covid काल में देखा है।जिस व्यक्ति ने निरंतर योग और आयुर्वेद को जीवन में अपनाया था उनको covid में बिना किसी समस्या के यह महामारी या तो छूई नही या तो छू कर निकल गई।

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आयुर्वेद में आचार्यों ने तीन ऐषणायों का वर्णन किया है प्राण एषणा, धन एषणा और परलोक एषणा जिसमे सबसे पहले उन्होंने प्राण बताया है क्योंकि प्राण होंगे तो धन का अर्जन होगा और उसके बाद परलोक का साधन होगा इसलिए प्राणों की रक्षा करने के लिए योग और आयुर्वेद को अपनाना ही जीवन का आधार है। योग व्यायाम के महत्व के लिए कहा गया है सुभाषित में "  व्यायामात् लभते स्वास्थ्यं दीर्घायुष्यं बलं सुखम्।आरोग्यं परमं भाग्यं स्वास्थ्यं सर्वार्थसाधनम्।।"

अर्थात व्यायाम से स्वास्थ्य, लम्बी आयु, बल, और सुख की प्राप्ति होती है।निरोगी होना परम भाग्य है और स्वास्थ्य से अन्य कार्य सिद्ध होते है।

इसलिए इस अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर हम सभी को अपने जीवन में योग और आयुर्वेद को पूर्ण रूप से उतारने का प्रण लेना होगा जिससे आने वाली हर परिस्थितियों का हम सामना करने के लिए तैयार रहे।इसका सबसे बड़ा दायित्व स्त्रीयों पर है क्योंकि उनके दिए हुए संस्कार ही हम बच्चों में बीज की तरह बो सकते है जो आगे चलकर नई पीढ़ी को उसका योगदान देंगे। और अपने जीवन को योग व आयुर्वेद से बेहतर बनाएंगे।

डा. आकांक्षा श्रीवास्तव 

(B.A.M.S. D.Y.A.)

(आयुर्वेदाचार्य एवम पंचकर्म विशेषज्ञ)

डा. आशुतोष श्रीवास्तव

M.D. (Anatomy)

(B.H.U. Famous क्षार सूत्र विधि विशेषज्ञ)







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