कवरेज इंडिया न्यूज़ ब्यूरो प्रयागराज
प्रयागराज: संगम नगरी प्रयागराज में हर साल गंगा और यमुना नदियों का जलस्तर बढ़ने से बाढ़ का खतरा मंडराता है, लेकिन वर्ष 1978 की बाढ़ आज भी लोगों के जेहन में एक भयावह मंजर के रूप में बसी है। उस साल गंगा और यमुना नदियों का जलस्तर इतना बढ़ गया था कि शहर जलमग्न होने की कगार पर पहुंच गया था। हालांकि, जिला प्रशासन की तत्परता और स्थानीय लोगों के सहयोग से एक बड़ी त्रासदी टल गई थी।
1978 में गंगा-यमुना का रिकॉर्ड जलस्तर
उस समय गंगा और यमुना नदियों ने खतरे के निशान को पार कर लिया था। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, खतरे का निशान 84.73 मीटर था, जबकि:
फाफामऊ में गंगा का जलस्तर 87.98 मीटर तक पहुंच गया था।
छतनाग में गंगा 88.03 मीटर की रिकॉर्ड ऊंचाई पर थी।
नैनी में यमुना का जलस्तर भी 87.98 मीटर तक जा पहुंचा था।
इस भयावह स्थिति ने पूरे शहर को दहशत में डाल दिया था। उस समय त्रिवेणी बांध की ऊंचाई भी अपेक्षाकृत कम थी, जिससे पानी के शहर में घुसने का खतरा और बढ़ गया था।
प्रशासन और जनता का अद्भुत समन्वय
1978 की बाढ़ के दौरान जिला प्रशासन ने जिस सूझबूझ और तत्परता का परिचय दिया, वह आज भी मिसाल है। तत्कालीन जिलाधिकारी भूरे लाल ने स्वयं मोर्चा संभाला और पुराने यमुना पुल पर बालू की बोरियां रखकर बांध को मजबूत करने में जुट गए। उनके साथ छात्रावासों से निकले सैकड़ों छात्रों ने भी इस कार्य में हाथ बटाया। इस सामूहिक प्रयास ने शहर को जलमग्न होने से बचा लिया।
रेडियो के जरिए पल-पल की खबर
उस दौर में टीवी या न्यूज चैनल का चलन नहीं था। दूरदर्शन भी कुछ ही घरों तक सीमित था। ऐसे में रेडियो लोगों का सबसे बड़ा सहारा था। बाढ़ की खबरों के लिए लोग रेडियो से चिपके रहते थे और पल-पल की जानकारी पर नजर रखते थे।
आज भी जिंदा है उस बाढ़ की याद
1978 की बाढ़ को देखने वाले पुराने निवासियों के लिए यह एक ऐसी याद है, जो आज भी उन्हें सिहरन से भर देती है। गंगा-यमुना के उफान ने न केवल शहर को खतरे में डाला था, बल्कि लोगों के मन में एक अनजाना डर भी पैदा कर दिया था। फिर भी, प्रशासन और जनता के संयुक्त प्रयासों ने इस आपदा को टाल दिया।
पुलिस कंट्रोल रूम, प्रयागराज के अनुसार, उस समय की यह बाढ़ शहर के इतिहास में सबसे भीषण थी। आज भी यह घटना प्रशासनिक सूझबूझ और सामुदायिक एकजुटता की एक मिसाल के रूप में याद की जाती है।